सुदर्शन चक्रधर महाराष्ट्र के मराठी दैनिक देशोंनती व हिंदी दैनिक राष्ट्र प्रकाश के यूनिट हेड, कार्यकारी सम्पादक हैं. हाल ही में उन्हें जीवन साधना गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया. अपने बेबाक लेखन से सत्ता व विपक्ष के गलियारों में हलचल मचा देने वाले सुदर्शन चक्रधर अपनी सटीक बात के लिए पहचाने जाते हैं. उनके फेसबुक पेज से साभार !
आम तौर पर जब अपने घरों में लगे नल का कोई पाइप लीकेज होता है, तो हम प्लंबर बुलाकर उसे सबसे पहले दुरुस्त करते हैं. प्लंबर, उस लीकेज में ‘एम सील’ वगैरह लगा देता है. लेकिन यह व्यवस्था स्थायी नहीं होती. बार-बार पाइप लाइन के लीकेज होने पर उसे बदलना ही पड़ता है. इसी तरह भारत का सिस्टम (तंत्र) भी इन दिनों लीक हुआ दिख रहा है. कभी आधार लिंक, कभी फेसबुक-डेटा लीक, कभी चुनाव डेट लीक, तो अब पेपर लीक! इस पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कहते हैं कि ‘चौकीदार वीक है!’ हम राहुल गांधी की बात से सहमत नहीं है. क्योंकि किसी भी संस्थान या अपार्टमेंट का चौकीदार न ऐसे लीकेज रोक सकता है, न उसे दुरुस्त कर सकता है! उसके लिए अच्छे प्लंबर की जरूरत होती है. राहुल यह काम करने के इच्छुक हैं, तो उनका स्वागत है!
लेकिन पेपर लीक की घटना, देश में कोई पहली बार नहीं हुई है. 70 साल से हो रही है. मगर उन दिनों सोशल मीडिया नहीं था. तकनीकी सूचना प्रणाली ही नहीं थी, तो हर चीज के ‘लीकेज’ सामने नहीं आते थे. बवाल नहीं मचता था. अब तो जरा-जरा-सी बात पर सोशल मीडिया के कारण हंगामा बरपाया जाता है. इसके लिए ‘चौकीदार’ को दोष देना मूर्खता है! हां, यह सच है कि हमारी शिक्षा और परीक्षा प्रणाली में कई खोट हैं. सबसे पहले उसे दुरुस्त करने की जरूरत है. वरना चौकीदार रखो या प्रधानसेवक अथवा कोई सुरक्षा गार्ड! …यह तंत्र (सिस्टम) सुधरने वाला नहीं है. इसका मतलब यह नहीं कि हम सीबीएसई और एसएससी के परचे लीक होने का समर्थन कर रहे हैं! यह प्रकरण निंदनीय है और देश की विश्वसनीयता पर एक बहुत बड़ा धब्बा है. सरकार की साख पर सवालिया निशान लगाने वाला है. क्योंकि इससे 25 लाख से अधिक बच्चों का भविष्य खतरे में हैं.
वह तो अच्छा हुआ कि पेपर लीक प्रकरण के विरोध में देशभर में प्रदर्शन हुए. उसके कारण यह मगरूर सरकार नींद से जागी. शिक्षा मंत्री को माफी मांगनी पड़ी. प्रकाश जावड़ेकर की जगह यदि लाल बहादुर शास्त्री होते, तो अब तक इस्तीफा दे चुके होते! तब नेताओं-मंत्रियों में लाज-शर्म होती थी! मगर अब सब के सब निर्लज्ज हो गए हैं! वैसे सरकार ने लीक हुए बारहवीं के अर्थशास्त्र का पेपर 25 अप्रैल को दोबारा लेने का निर्णय लिया है, जबकि दसवीं के गणित की परीक्षा जरूरत पड़ने पर सिर्फ दिल्ली और हरियाणा में ही जुलाई माह में ली जाएगी. यहां सवाल यह है कि क्या छात्रगण बार-बार परीक्षाएं ही देते रहेंगे? क्या उन्हें गर्मी की छुट्टियों के आनंद से भी वंचित रखा जाएगा? जिन अभिभावकों ने गर्मी की छुट्टियों में कहीं घूमने-फिरने जाने का प्लान पहले से बना रखा है, अब उनका क्या होगा?
दोबारा परीक्षा देने की इस सख्ती के कारण वे लाखों छात्र परेशानी और तनाव में हैं, जिन्होंने इस परीक्षा के लिए दिन-रात मेहनत की थीं. उन्हें अच्छे नम्बर्स मिलने की उम्मीद भी थीं. दोबारा परीक्षा देने पर जरूरी नहीं कि वे छात्र वैसा ही प्रदर्शन दोहरा सकेंगे! अगर सरकार या केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) को लीक हुए पेपर हासिल करके परीक्षा देने वाले छात्रों को पकड़ना है, तो सभी लाखों बच्चों की परीक्षा दोबारा लेने के स्थान पर उन्हें एक निश्चित तिथि को संबंधित स्कूल में बुलाकर मौखिक रूप से उक्त लीक हुए पेपर के एक-दो सवालों के उत्तर बताने कहना चाहिए. जो छात्र मेधावी हैं, और जिन्होंने ईमानदारी से परीक्षा दी होगी, वे तो इन प्रश्नों का जवाब आसानी से दे देंगे, लेकिन जिन्होंने लीक हुए पेपर को प्राप्त कर परीक्षा दी होगी, वे अटपटा जाएंगे. इससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा! यहां मुद्दे की बात यह कि एसएससी और सीबीएसई बोर्ड के दोनों चेयरमैन (असीम खुराना और अनीता करवाल) को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर देना चाहिए, लेकिन क्या मोदी सरकार इन दोनों गुजराती अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाने का साहस जुटा पाएगी?
– सुदर्शन चक्रधर- 96899 26102