जो भी चीज इस देश की माटी में घुल-मिल नहीं सकती, उसे भारत में रहने-विचरने का कोई अधिकार नहीं है. यह कटु-सत्य हर उस व्यक्ति, समाज या संस्था-संगठन सहित प्लास्टिक पर भी लागू होता है, जो घोर अघुलनशील है. यह ‘खतरनाक कौम’ न केवल देश की मिट्टी को बंजर बना रही है, बल्कि बड़े पैमाने पर प्रदूषण भी फैला रही है, जिससे देश की आबोहवा भी खराब हो रही है. महाराष्ट्र सरकार ने इस पर हाल ही में प्रतिबंध लगाया है, लेकिन अपना तो मानना है कि इस पर देशव्यापी प्रतिबंध लगा देना चाहिए. इसकी खतरनाक ‘तासीर’ के कारण ही ‘शिवशाही’ में इसके चलन-विचलन पर प्रतिबंध लगा दिया गया, मगर ‘मोदीशाही’ में इतना दम नहीं कि इसे नेस्तनाबूद कर सके!
मेरी बात से वे लोग पूर्णत: असहमत होंगे, जो प्लास्टिक प्रेमी हैं. कई लोगों की ‘दुकानदारी’ और पॉलिटिक्स इन्हीं प्लास्टिक्स के भरोसे चलती है. इसके पीछे ‘वोट बैंक’ एक बड़ा कारण है. इसी ‘वोट बैंक’ के चलते इस देश पर प्लास्टिक वाले हावी होने लगे हैं. प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाए जाने की खबरों के बीच यह भी कहा गया, ‘जब इस देश में प्लास्टिक ही सुरक्षित नहीं है, तो भला कौन सुरक्षित होगा?’ प्लास्टिक प्रेमियों ने इस मुद्दे का कई बार राजनीतिकरण भी किया. प्लास्टिक को बचाने के लिए कई बार विभिन्न शहरों में आंदोलन भी हुए, मगर यह खतरनाक ‘कौम’ धीरे-धीरे सर्वत्र हावी होती गई. कोई इन ‘झिल्लियों’ का कुछ नहीं बिगाड़ पाया. वह तो भला हो शिवसेना का, जिसने इस ‘कौम’ पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाने का फैसला किया, मगर हर मुद्दे की तरह राजनीति ने इसमें भी वोट बैंक का स्वार्थ ढूंढ लिया. कुछ अड़ गए, कुछ उखड़ गए. आखिरकार सरकार को भी उनके दबाव में झुकना पड़ा. क्योंकि सामने चुनाव है. इनके लिए एक-एक वोट कीमती है. इसलिए प्लास्टिक वालों के सामने वोटों के खिलाड़ियों को झुकना पड़ा. भले ही देश और प्रदेश जाए भाड़ में…!
वैसे तो प्लास्टिक भी अब कश्मीर की तरह हमारे देश का अभिन्न अंग है. वह कश्मीर से केरल तक और बंगाल से बम्बई तक हावी है. तभी तो प्लास्टिक वाले इस देश की नस-नस में घुस चुके हैं. फिर भी देश की 85 फ़ीसदी जनता प्लास्टिक से नफरत करती है. उसे किसी भी कीमत पर स्वीकारना नहीं चाहती. इन प्लास्टिक पर ‘तिलक’ नहीं लगता, मगर यह ‘टोपी’ पहनाने के काम जरूर आती है! फिर भी सेक्युलर कहलाती हैं! जिन लोगों को प्लास्टिक बिल्कुल नहीं चाहिए, अब उन्हें अपनी आदत बदलनी चाहिए. प्लास्टिक के विकल्पों पर ध्यान देना चाहिए. क्योंकि प्लास्टिक दरअसल, एक ऐसी ‘फितरत’ है, जिसके सेवन से गायें बीमार हो जाती हैं. वैसे इस प्लास्टिक को गाय तो पूरी तरह नहीं खा पाती, मगर आज तक करोड़ों गायों को ये ‘प्लास्टिक कौम’ खा चुकी है! तो क्यों न हो, ऐसी खतरनाक प्लास्टिक का बहिष्कार…?
मूलतः प्लास्टिक की उपज में ही खोट है. ये ऐसी हो, या ‘वैसी’ हो! हैदराबाद की फैक्ट्री में उत्पादित हो, या कश्मीर की,… वाकई प्लास्टिक बहुत बुरी ‘कौम’ है। समझदार जनता, देश के इस ‘नाजायज उत्पाद’ से जितना दूर रहे, उनके स्वास्थ्य के लिए उतना ही लाभप्रद होगा. ऐसा नहीं कि सभी प्रकार की प्लास्टिक सेहत के लिए नुकसानदेह ही होती हैं. कुछ विशिष्ठ प्रकार की ‘ब्रांडेड’ प्लास्टिक देश की माटी में घुलनशील भी हैं. ये ऊंचे दर्जे के प्लास्टिक होती हैं, जो किसी के स्वास्थ्य के लिए खतरा नहीं बनतीं. ऐसे ‘प्रोडक्ट’ का स्वागत होना चाहिए. सरकार भी कहती है कि ज्यादा माइक्रोन वाले प्लास्टिक से किसी को कोई खतरा नहीं होता. उन्हें ‘रिसाइकल’ किया जा सकता है. मतलब इस देश में उत्पादित आधे प्लास्टिक गलत, …और आधी सही है. अब सही और गलत की पहचान करना ही समाज का काम है. अब सरकार घर-घर जाकर प्लास्टिक जमा करने वाली है. हमारा दावा है कि कितना प्लास्टिक पकड़ोगी, हर घर से प्लास्टिक निकलेगी…! (बतर्ज – कितने अफजल मारोगे, हर घर से अफजल निकलेगा !) जय हिन्द!