मुंबई ( तेजसमाचार प्रतिनिधि ):AICTE के खुलासे के अनुसार हर साल इंजीनियरिंग, एबीए, एमसीए, आर्किटेक्चर फार्मेसी जैसे पाठ्यक्रमों की पढ़ाई पूरी करने वाले 100 विद्यार्थियों में से अौसतन 14 से 15 विद्यार्थी ही प्लेसमेंट पा रहे हैं। पिछले चार वर्षों की स्थिति को देखें, वर्ष 2016-17 का प्लेसमंेट रेट सबसे न्यूनतम स्थिति में रहा है। वर्ष 2016-17 में इन पाठ्यक्रमों कुल 4 लाख 42 हजार 417 विद्यार्थियों में से महज 63 हजार 533 विद्यार्थियों (14.3 प्रतिशत) को ही प्लेसमेंट मिल सका है।
मेक इन महाराष्ट्र
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने युवाओं को रोजगार देने में अग्रिम भूमिका लेते हुए ‘मेक इन महाराष्ट्र’ योजना के तहत कंपनियों को प्रोत्साहन देने का एलान किया था। वहीं इंडस्ट्री की डिमांड के अनुरूप युवाओं का हुनर निखारने के लिए कौशल विकास योजना को भी प्रसारित किया गया था। मगर प्लेसमंेट के आंकड़े प्रदेश में बेराेजगारी की हकीकत बयां कर रहे हैं। प्रदेश में वर्ष 2013-14 में प्लेसमेंट दर 14.5 प्रतिशत थी।वर्ष 2014-15 में 15.1 प्रतिशत और वर्ष 2015-16 में 15.9 प्रतिशत विद्यार्थियों का प्लेसमेंट हुआ था। इसके बाद वर्ष 2016-17 में प्लेसमेंट दर सबसे न्यूनतम स्तर पर यानी 14.3 प्रतिशत पर पहुंची है।
कॉलेजों की हालत भी बिगड़ी
प्लेसमंेट के आंकड़ें तकनीकी पाठ्यक्रम पढ़ाने वाले कॉलेजों के दर्द की वहज हैं। बेहतर प्लेसमेंट नहीं मिलने से विद्यार्थियों का एक बड़ा वर्ग तकनीकी पाठ्यक्रमों से दूर हुआ है। इस वर्ष नागपुर विभाग मंे 22 हजार इंजीनियरिंग सीटों में से करीब 6 हजार सीटों पर विद्यार्थियों ने प्रवेश नहीं लिया। वहीं राज्य भर में तकनीकी पाठ्यक्रमों में पिछले वर्ष की तुलना मंे 20 हजार सीटें खाली हैं। इसका असर कॉलेजों की आर्थिक स्थिति पर भी पड़ रहा है।