नई दिल्ली ( तेजसमाचार संवाददाता ) – अटलजी के प्रेरक जीवन के अविस्मरणीय प्रसंगों को विभिन्न पुस्तकों और स्रोतों से अटलनामा के जरिए एक मीडिया मित्र ने सुन्दर संकलित किया है. हिन्दुस्तान को परमाणु संपन्न कर विश्व पटल पर स्थान दिलाने वाले पूर्व प्रधानमन्त्री, राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक, पत्रकार, कवि, ओजस्वी वक्ता, करोड़ों भारतवासियों के आदर्श अटल बिहारी वाजपेयी का स्मरण करते हुए तेजसमाचार.कॉम की श्रध्दा सुमनों के साथ प्रस्तुति :- भाग 04
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क्यों लाल बहादुर शास्त्री जी की रहस्यमयी मौत के लिए अटल जी खुद को दोषी मानते थे ……और कैसे 3 तरीकों से अटल जी ने शास्त्री जी को सच्ची श्रद्धांजलि दी .
सन 1965-66 मे भारत-पाक युद्ध हुआ. भारतीय सेना ने अपने चिर परिचित अंदाज़ मे कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान को धूल चटा दी. हमारी जाँबाज सेना लाहौर तक घुस गई. वहाँ की हवाई पट्टी और पुलिस स्टेशनों के आस पास माँ भारती के सपूत तिरंगा फहरा रहे थे. युद्द समाप्ति की घोषणा के बाद अंतर्राष्ट्रीय दवाब के चलते प्रधानमंत्री शास्त्री जी औऱ पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान को समझौते के लिए रूस बुलाया गया.
तय कार्यक्रम के मुताबिक समझौता 11 जनवरी 1966 को होना था. यहाँ एक दिन पहले ही भारत मे ये खबर फैल गई कि समझौते के तहत भारत लड़ाई मे जीते हुए भूभाग पाकिस्तान को वापस कर देगा और उसके युद्धबंदियों को भी छोड़ देगा. अटल जी उस समय राज्यसभा के सांसद थे. उन्हें जब पता चला कि समझौते के तहत भारत जीती हुई जमीने पाकिस्तान को वापस करने जा रहा है तो उन्होने सरकार की बहुत ही तीखी आलोचना की. पूरी संसद ने उस दिन अटल जी का रौद्र रूप देखा. उन्होंने कहा ” ये समझौता नही है. ये तो सरासर शहीदों का अपमान है. उनकी शहादत का अपमान है.युद्ध शुरू उन्होंने किया औऱ खत्म हमने…तो हम क्यों समझौते के गलत परिणाम भुगतें…क्या भारत ने वर्साए की संधि से कोई सबक नही लिया जिसके चलते दूसरा विश्वयुद्ध हुआ…हमारा शौर्य…हमारा बलिदान क्या इसलिए था कि विदेश में हारे शत्रु से समझौता किया जाए..इतिहास पहली बार देख रहा होगा जब विजयी पक्ष को समझौते से बदनामी झेलनी पड़ी हो…कौन आगे बलिदान देगा ? कौन लड़ेगा भारत माता की अस्मिता के लिए जब हमें ही उनकी फिक्र नहीं…कैसे हम सृजन करेंगे नव-पीढि़यों में देशभक्ति की, जब हमारे ही जवानों के हौसलों को ऐसे समझौतो से तोड़ा जाएगा…कैसे ? सरकार जवाब दे. युद्ध में भारत का खून बहा है…हम इसी खून से अपना भविष्य सींचेंगे…हमें रूसियों और अमेरिकियों के मरहम की कोई जरूरत नहीं क्योंकि वो मरहम के रूप में ज़ख्म परोस रहे हैं….मुझे शास्त्री जी पर भरोसा है कि वो ऐसा कत्तई नही होने देंगे पर यदि ऐसा हुआ तो मै नही जानता कि वो कैसे भारतवासियों से आँखें मिलाकर बात कर पाएंगे…मैं नही जानता. शास्त्री जी ने जय जवान और जय किसान का नारा तो दे दिया अब वक्त है इस नारे का मान रखने का…”
पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्धविराम के समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घण्टे बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही उनकी मृत्यु हो गयी.
12 जनवरी को जब भारत मे शास्त्री जी की मौत की खबर फैली तो पूरे देश मे हाहाकार मच गया…उनका नायक…उनका प्रधानमंत्री…उनका सखा अब नहीं रहा…सादगी और त्याग की मूरत अब स्वर्ग सिधार चुकी थी. पर अटल जी का दुख इससे कहीं ज्यादा था…अटल जी को लगता था कि कहीं उनकी बेहद कठोर आलोचना के चलते तो शास्त्री जी को दिल का दौरा नही पड़ा? क्योंकि अटल जी जानते थे कि शास्त्री जी भले दूसरे दल के हों पर उस समय उनसे बड़ा सपूत भारत मे कोई नही था. अटल जी भारी सदमे में थे. उनको लगा कि उनकी आलोचना मे शब्द बहुत ज्यादा कठोर हो गए थे जो शायद शास्त्री जी को वाकई पूछ रहे थे कि कैसे मुँह दिखाएंगे देशवासियों को….कैसे मान रखेंगे जय जवान जय किसान का? अटल जी अब अपने ही किए पर पछता रहे थे…वो सोच रहे थे कि कैसे माफ कर पाउंगा खुद को ताउम्र? लेकिन अटल जी कि ये सोच निर्मूल साबित हुई. अटल जी ने शास्त्री जी के निजी सचिव पी.सी. श्रीवास्तव से बात की और अपनी चिंता प्रकट की…श्रीवास्तव जी ने कहा कि अटल जी आप खुद को ना कोसें…….सोने से पहले मेरी शास्त्री जी से बात हुई थी…वो सामान्य थे. वो बोल रहे थे कि उन्हे पता है विपक्ष ने क्या क्या बोला है उनके खिलाफ, उन्हें यही उम्मीद भी थी.. वो स्वदेश आकर आप लोगों से मिलकर सब चीजें, सारे अनुभव बांटना चाहते थे. आप कृपया खुद को उनकी मौत के लिए जिम्मेदार मत मानिए…वरना ये विषाद आपके अंदर के देशभक्त राजनेता को जीते जी मार देगा .
तब जाकर अटल जी ने आत्मग्लानि से मुक्त होकर राहत की सांस ली.
अटल जी ने आगे चलकर कई ऐसे काम किए जिसे देखकर शास्त्री जी की आत्मा भी गर्व करती होगी. देश का प्रधानमंत्री होने के बावजूद अटल जी का रहन-सहन,जीवन-यापन सादा ही रहा…जैसे शास्त्री जी का था .
1999 मे कारगिल युद्द के दौरान भारत ने पाकिस्तान को एक और करारी शिकस्त दी…मानो अटल जी ने ताशकंद का बदला ले लिया हो….यही नहीं…शास्त्री जी के लोकप्रिय नारे जय जवान जय किसान को अटल जी ने एक नया आयाम भी दिया – जय जवान जय किसान जय विज्ञान .
शायद यही सबसे उपयुक्त श्रद्धांजलि थी शास्त्री जी को अटल जी की तरफ से…..
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अटलजी ने इंदिराजी को दुर्गा नहीं कहा था…
इस प्रसंग पर खुद अटल जी ने अपने एक आत्मकथ्य मे लिखा है कि —-
”मै भी उन लोगों मे शामिल था जिंहोने इंदिरा जी के बांग्लादेश के मामले मे सफल नेतृत्व के लिए उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की थी किंतु यह धारणा गलत है कि मैने किसी वक्त उन्हें ‘दुर्गा’ कहा था. मैने उनकी तारीफ जरूर की थी पर उन्हे ‘दुर्गा’ नहीं कहा था. इस तथ्य को मै कई बार स्पष्ट कर चुका हूँ किंतु प्रचलित धारणा इतनी बद्धमूल है कि अभी भी लोग इस बात के लिए मेरी प्रशंसा करते हैं कि मैने संकट काल मे सारे राजनीतिक मतभेदों को ताक पर रखकर सरकार को पूर्ण सहयोग दिया था और इंदिरा जी को ‘दुर्गा’ के रूप मे वर्णित किया था. जब श्रीमती पुपुल जयकर इंदिरा जी की जीवनी लिख रही थी तो वह उसमें इस बात का उल्लेख करना चाहती थीं किंतु मेरे मना करने पर उन्होंने उल्लेख तो नहीं किया पर इस बात की गहरी छानबीन जरूर की कि मैने इंदिरा जी को ‘दुर्गा’ कहा था या नही. संसद की कार्यवाही और उस समय के समाचार पत्रों को देखने के पश्चात उन्हें यह विश्वास हो गया कि था कि मैने ऐसा कुछ नहीं कहा था.
प्रश्न यह है कि यह समाचार फिर फैला कैसे ? मुझे लगता है कि उस समय किसी और नेता ने इंदिरा जी को ‘दुर्गा’ के रूप मे वर्णित किया था और कुछ पत्रों ने उनके कथन को मेरे नाम से छाप दिया .
इंदिरा जी के साथ संसद मे मेरी नोंक-झोंक होती रहती थी किंतु राजनीतिक मतभेदों को उन्होंने कभी व्यक्तिगत संबंधों मे बाधक नही बनने दिया. ”
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आजादी के बाद से यानी लगभग 7 दशक के भारतीय लोकतंत्र मे अकेले सिर्फ अटल जी ही हैं जो चार अलग अलग राज्यों से जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं. अभी तक ऐसा कोई भी दूसरा नेता नही है जिसने ये कारनामा किया हो. यही नही चार राज्यों की बात छोड़ भी दे तो अटल जी ही इकलौते ऐसे नेता हैं जिन्होने 6 अलग अलग लोकसभा क्षेत्रों से चुनाव जीता है. आइए पहले जानते हैं उन 4 राज्यों के बारे मे जहां से अटल जी ने लोकसभा का चुनाव जीता है. ये 4 राज्य हैं –
1.उत्तर प्रदेश
2.दिल्ली
3.मध्य प्रदेश
4.गुजरात
आइए अब जानते है उन 6 लोकसभा क्षेत्रों के बारे मे जहां से अटल जी लोकसभा का चुनाव जीते –
1.बलरामपुर (1957-62 और 1967-71)
2.ग्वालियर (1971-77)
3.नई दिल्ली (1977-80 और 1980-84)
4.विदिशा (1991 – लखनऊ से भी जीतने के बाद अटल जी ने ये सीट छोड़ दी)
5.लखनऊ (1991-96,1996-98,1998-99,1999-04 और 2004-09)
6.गांधीनगर (1996 -लखनऊ से भी जीतने के बाद अटल जी ने ये सीट छोड़ दी)
ये आंकड़े खुद अटल जी की लोकप्रियता की गवाही देते है. कई फिल्मी सितारे और नामी शख़्सियतें अटल जी के खिलाफ इसलिए चुनाव लड़ती थी क्योंकि वो जानते थे कि इस शख़्स से हारकर भी नाम होगा. अटल जी ऐसी शख़्सियत थे जो कश्मीर से कन्याकुमारी तक स्वीकार्य थे. वो भारत मे कहीं से भी लड़ते जनता का आशीर्वाद उन्हे मिलता. अटल जी के कद के आगे प्रांत और धर्म की विविधिता एक बेईमानी थी.
इस दौरान अटल जी दो बार राज्य सभा के सदस्य भी रहे. 1962 और 1986 मे अटल जी राज्यसभा के लिए चुने गए. 1957 से लेकर 2009 तक सिर्फ 1985 ही ऐसा इकलौता वर्ष था जब अटल जी संसद के सदस्य नही थे . इस तरह अटल जी ने 52 साल संसद मे बिताए हैं. 52 साल भारत की संसद की दीवारें भी ये सोच कर खुद पर इतराती होंगी कि उसने अटल जी को बोलते सुना.
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अटलजी के तीखे व्यंग्यबाणों को सुनकर पंडित नेहरु भी ठहाके लगाने को मजबूर हो जाते थे-
बात 1957 के दौर की है जब अटल जी बलरामपुर से कांग्रेस के हैदर हुसैन को हराकर पहली बार संसद पहुंचे थे. लोकसभा में किसी चर्चा के दौरान पंडित नेहरु जी ने अटल जी की पार्टी जनसंघ पर निशाना साधते हुए कहा की ये पार्टी सामाजिक अस्थिरता के लिए जिम्मेदार है…..!
जब बोलने की बारी अटल जी की आई तो अटल जी ने कहा ”मुझे पता है नेहरु जी रोज़ सुबह शीर्षासन करते हैं…खूब करें…पर कम से कम मेरी पार्टी की तस्वीर तो उल्टी ना देखें.”
इतना सुनना था की पंडित नेहरु जी संसद में ही जोर जोर से ठहाका मार मार कर हंसने लगे. नेहरु जी समझ गए थे की इन दो पंक्तियों के जवाब से अटल जी ने ना सिर्फ जनसंघ का पक्ष रखा बल्कि एक बेहद अलग हलके फुल्के अंदाज़ में शब्दों का वो प्रहार किया है जो एक कुशल वक्ता भी घंटो के भाषण के बाद भी ना कर पाता.
अटल जी में ये खूबी थी…वाक्पटुता को संसद में सबसे व्यावहारिक रूप में इस्तेमाल करने का ये आरम्भ था.
पूरी लोकसभा पंडित नेहरु को सुनती थी पर वो अटल जी को सुनते थे..(कुछ और वक्ता भी उनके प्रिय थे जैसे हिरेन मुखर्जी जी)
पंडित नेहरु और अटल जी के बीच भी एक अलग ही सियासी रिश्ता था…ये अटल जी ही थे जिन्होंने नेहरु जी को संसद में हिंदी में बोलने और जवाब देने के लिए मजबूर किया…