मुंबई (तेज समाचार डेस्क). चैतन्य महाप्रभु के जन्मोत्सव पर मीरारोड स्थित इस्कान मंदिर से सुबह प्रभात फेरी निकाली गई. इस प्रभात फेरी में लगभग 4000 लोग शामिल हुए. चैतन्य महाप्रभु के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में सुबह 4.30 बजे मंगला आरती, तुलसी आरती, शाम को अभिषेक किया गया. इसके बाद चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं से संबंधित कथा का आयोजन किया गया. मीरारोड इस्कान मंदिर के अध्यक्ष प्रभु कमल लोचन ने चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं का वर्णन करते हुए कहा कि नाचते-गाते, झांझ-मंजीरा बजाते हुए भी प्रभु की भक्ति की जा सकती है. प्रभु भक्ति के इस स्वरूप को चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं अपनाया और सामान्य जनों को भी इसे अपनाने के लिए प्रेरित किया.
– गौडीय संप्रदाय की रखी आधारशिला
उन्होंने कहा कि भक्तिकाल के प्रमुख संतों में चैतन्य महाप्रभु भी शामिल हैं. वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला उन्होंने ही रखी. इस्कान मंदिर के उपाध्यक्ष बनमाली ने कहा कि विलुप्त हो चुके वृंदावन को उन्होंने फिर से बसाया. जीवन के अंतिम समय में भजन-कीर्तन करते हुए वे वहीं रहे. उन्होंने बताया कि चैतन्य महाप्रभु का जन्म 1486 में पश्चिम बंगाल के नवद्वीप गांव में हुआ, जिसे अब मायापुर कहा जाता है. चैतन्य महाप्रभु द्वारा प्रारंभ किए गए नाम संकीर्तन का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज देश-विदेश में दिख रहा है.
– हरिनाम भजन से ही सुख की प्राप्ति
उन्होंने कहा कि कल्युग में हरिनाम भजन से ही जीवन में सुख प्राप्त किया जा सकता है. नश्वर चीजों से केवल दुख ही मिलता है. इसलिए मानव को सत्संग एवं हरिनाम का संकीर्तन करना चाहिए.
– देश-विदेश में असंख्य अनुयायी
उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के प्रति चैतन्य महाराज की अनन्य निष्ठा व विश्र्वास के कारण देश-विदेश में इनके असंख्य अनुयायी हो गए. चैतन्य महाप्रभु अपने शिष्यों के सहयोग से ढोलक, मृदंग, झांझ, मंजीरे आदि वाद्य यंत्र बजाकर व उच्च स्वर में नाच-गाकर हरि नाम संकीर्तन करते रहे. उन्होंने कहा कि 21 मार्च फाल्गुन पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व है. क्योंकि इसी दिन प्रभु श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया. शाम को महाभंडारे का आयोजन किया गया, जिसका लाभ हजारों भक्तों ने लिया.