‘महाभारत’ के महायुद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने जिस तरह एक-एक कर कौरवों के कई महायोद्धाओं को निपटा कर पांडवों को युद्ध जितवाया था, लगता है 2019 के अखिल भारतीय युद्ध (आम चुनाव) से पहले विपक्ष के श्रीकृष्ण, सत्ताधीश ‘कौरवों’ के महारथियों को निपटा रहे हैं। 11 दिसंबर को आ रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम इसकी तस्दीक कर ही देंगे। श्रीकृष्ण ने ‘महाभारत’ से पहले एक-एक करके कंस ‘मामा’, चाणुर, मुष्टिक, कालयवन, जरासंध, बर्बरीक, पौंड्रक, नरकासुर और शिशुपाल का वध किया था। तभी वे महायुद्ध में पांडवों को विजयश्री दिलवा सके थे। अगर ये सभी महायोद्धा जीवित होते, तो पांडवों की ‘कौरव-विजय’ मुश्किल होती। लगता है आधुनिक भारत में, महाभारत का इतिहास एक बार फिर दोहराया जा रहा है। सत्ताधीश कौरवों के काम आ सकने वाले क्षेत्रीय नेता रूपी योद्धा 2019 से पहले ही निपटाए जा रहे हैं।
‘महाभारत’ में उद्दंड, घमंडी और तानाशाह किस्म के कई पात्र थे, किंतु सब का अंत बुरी तरह हुआ ही। इनमें से कुछ पात्रों की छवि वर्तमान शासकों से मिलती-जुलती है। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण पात्र था ‘शिशुपाल’, जो हमारे सर्वशक्तिमान कर्णधार जैसा ही था। श्रीकृष्ण ने तब प्रण किया था कि मैं शिशुपाल के 100 अपराध क्षमा कर दूंगा। उसे सुधरने के 100 मौके अवश्य दूंगा। मगर शिशुपाल माना नहीं, सुधरा नहीं। खालिस घमंडी था वह। वह श्रीकृष्ण को बच्चा, भोला या ‘पप्पू’ ही समझता रहा। वह स्वयं को आयु, बुद्धि और शक्ति में श्रीकृष्ण से श्रेष्ठ ही समझता था। परिणामस्वरूप वह एक-एक कर 100 गलतियां करता रहा, …और अंत में उसके द्वारा 101 वीं गलती (अपराध) करते ही श्रीकृष्ण ने अपना ‘सुदर्शन चक्र’ चला कर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया।
लगता है वही नौबत अब 2019 में आने वाली है। इन दिनों ‘श्रीकृष्ण’ के रूप में देश की जनता के हाथ में वोटों का ‘सुदर्शन चक्र’ है। वह वर्तमान शिशुपालों के सौ गुनाह माफ तो कर रही है, मगर 101वें अपराध पर वह शिशुपालों की सत्ता की गर्दन उड़ाने का माद्दा भी रखती है। अगर 11 दिसंबर को आने वाले नतीजों में कौरव-मार्का क्षेत्रीय सत्ताधीशों का अंत होने पर भी वर्तमान ‘शिशुपाल’ नहीं माने, तो 2019 के आम चुनाव में इनकी सत्ता की गर्दन कटना तय है। अब तक आए तमाम ओपिनियन और एग्जिट पोल्स के अनुसार राजस्थान और मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होता दिख रहा है। छत्तीसगढ़ में पक्ष-विपक्ष में कांटे की टक्कर है। अगर इन तीनों हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा हार गई, तो 2019 का भविष्य साफ देखा जा सकता है।
हालांकि आजकल के एग्जिट पोल्स पर भरोसा करना वैसी ही भूल होगी, जैसे 2014 में हमने ‘अच्छे दिन आएंगे, काला धन लाएंगे, सबका साथ सबका विकास होगा’ आदि लच्छेदार बातों पर भरोसा करके ‘फेंकू’ की सारी बातें मान ली थीं। तब हम में से किसी को पता नहीं था कि पूरा पहाड़ खोदने पर उसमें से ‘झूठ और फरेब का चूहा’ निकलेगा! मगर एग्जिट पोल्स के अनुसार 5 में से 3 राज्य भी ‘फेंकुओं’ के पास से निकल गए, तो 2019 में भगवान श्रीराम भी इन्हें नहीं बचा पाएंगे। यानि जनता का ‘सुदर्शन चक्र’ चलेगा और 100 बार धोखा करने वाले ‘शिशुपाल’ की राजनीतिक गर्दन कट जाएगी! तब इन्हें पता चलेगा कि घमंड करना अच्छी बात नहीं है। घमंडी का सिर हमेशा नीचा ही होता है।
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