हमें फख्र है की वो खुखरायन हँसाता था लोगों को,
वर्ना आज के दौर में थोड़ी भी हँसी कहाँ मिलती है !!
जी हाँ ! आज हम बात कर रहे हैं उस खुखरायन की , जो अपनी अदायगी, शब्दों व हुनर से लोगों के जीवन में गुदगुदी फैलाता था. खुखरायन सुशील कुमार चड्डा को बहुत कम लोग ही उनके असली नाम से जानते होंगे. लेकिन यदि हम बात चुटकले बिखेरने वाले कवी हुल्लड़ मुरादाबादी की बात करें तो शायद कोई भी उनके परिचय से अनभिज्ञ नहीं होगा.
हुल्लड़ मुरादाबादी उर्फ़ खुखरायन सुशील कुमार चड्डा का जन्म 29 मई 1942 को पाकिस्तान के शहर गुजरांवाला में हुआ था . विभाजन की पीड़ा सहते हुए सुशील चड्डा के परिजन भारत आकर मुरादाबाद में बस गए थे. उनका परिवार मुरादाबाद में बुध बाजार के निकट सबरवाल बिल्डिंग के पीछे स्थित एक आवास में किराए पर रहने लगा. बाद में स्थिति सुधरते ही सुशील चड्ढा परिवार ने सेंट मैरी स्कूल के निकट, सिविल लाइंस अपना खुद का आवास बना लिया. इसे खुखरायनो की हिम्मत व जुनून ही कहा जाएगा की विभाज़न की सर्वाधिक त्रासदी इन परिवारों ने ही झेली हैं. तत्कालीन अखंड भारत ( आज के पाकिस्तान ) में खुखरायन परिवारों को अपनी मेहनत व इमानदारी से कमाई अपनी अकूत संपत्ति को छोड़कर भारत पलायन करना पडा. खुखरायन परिवारों ने परिस्थितियों का सामना करते हुए अपनी भारत माता से प्यार करते हुए फिर से मेहनत , हिम्मत, लगन के दम पर न केवल खुद का संबल किया बल्कि देश के विकास व निर्माण में भी योगदान दिया है और दे रहे हैं. खुखरायन सुशील कुमार चड्डा व उनके परिवार ने भी खुखरायन होने की यही मिसाल पेश की.
खुखरायन सुशील कुमार चड्डा 1977 में परिवार के साथ मुंबई चले गए. बाद में उन्होंने वर्ष 2000 में अपना घर बार बेचकर पूरी तरह से मुरादाबाद से दुरी बना ली. लेकिन इसके बावजूद उनका मुरादाबाद स्नेह बना रहा. खुखरायन सुशील कुमार चड्डा को मुरादाबाद से ही पहचान मिली थी, भला इस पहचान को वह यां उनका परिवार कैसे भुला सकते हैं. खुखरायन सुशील के परिवार में पत्नी कृष्णा चड्ढा के साथ ही आज के युवा हास्य कवियों में शुमार पुत्र नवनीत हुल्लड़, पुत्री सोनिया एवं मनीषा हैं. उन्होंने महानगर के केजीके कालेज में शिक्षा ग्रहण करते हुए बीएससी व बाद में हिंदी से एमए की डिग्री हासिल की. पिता के नक़्शे कदम पर चलते हुए नवनीत ने भी पढ़ाई के दौरान ही कालेज में सहपाठी कवियों के साथ कविता पाठ प्रारंभ कर दिया .
हुल्लड़ मुरादाबादी उर्फ़ खुखरायन सुशील चड्ढा ने अपने करियर के प्रारंभ में तो वीर रस की कविताएं लिखी लेकिन कुछ समय बाद ही वह हास्य रचनाओं की ओर मुड गए. परिणाम स्वरुप खुखरायन सुशील चड्ढा की हास्य रचनाओं से महफिले ठहाको से भरने लगी. तब तक वह सुशिल चड्ढा के रूप में ही पहचान रखते थे. इसी दौरान वर्ष 1962 में उन्होंने ‘सब्र’ उप नाम से हिंदी काव्य मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. बाद में वह हुल्लड़ मुरादाबादी के नाम से देश दुनिया में पहचाने गए.
हुल्लड़ मुरादाबादी ने हर छोटी सी बात को अपनी रचनाओं का आधार बनाया. कविताओं के अलावा उनके दोहे सुनकर श्रोता हंसते-हंसते लोटपोट होने लगते. सुशिल चड्ढा की दूरदर्शिता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जाता है की इस खुखरायन ने बहुत पहले जो अपनी कविताओं में लिखा था वह आज भी सटीक साबित होता है. हुल्लड़ कहा करते थे की..
पूर्ण सफलता के लिए, दो चीजें रख याद,
मंत्री की चमचागिरी, पुलिस का आशीर्वाद.
राजनीती पर व्यंग्य करते हुए हुल्लड़ ने कहा था..
‘जिंदगी में मिल गया कुरसियों का प्यार है,
अब तो पांच साल तक बहार ही बहार है,
कब्र में है पांव पर,
फिर भी पहलवान हूं,
अभी तो मैं जवान हूं.
सुशिल चड्ढा अपने दोहों से लोगों के दिलों में गुदगुदी बिखेरते थे. व्यंग्य व हास्य के माध्यम से वह अपनी सीधी बात श्रोताओं तक पहुंचा देते थे.
कर्जा देता मित्र को वो मूरख कहलाय
महामूर्ख वो यार है
जो पैसे लौटाय
पुलिस पर व्यंग्य करते हुए हुल्लड़ कहते हैं ….
बिना जुर्म के पिटेगा
समझाया था तोय
पंगा लेकर पुलिस से
साबित बचा न कोय
सुशिल चड्ढा ने अभिनय भी अपने हाँथ अजमाए, लेकिन उन्हें यह फिजा पसंद नहीं आई. हुल्लड़ ने फिल्म संतोष एवं बंधनबाहों में अभिनय किया था. भारतीयों के फिल्मों के भारत कुमार कहे जाने वाले मनोज कुमार के साथ उनके मधुर संबंध रहे हैं.
हुल्लड़ मुरादाबादी विभिन्न सम्मानों से अलंकृत थे. उन्हें हास्य रत्न अवार्ड, काका हाथरसी पुरस्कार , महाकवि निराला सम्मान, कलाश्री अवार्ड, ठिठोली अवार्ड, टीओवाईपी अवार्ड, अट्टहास शिखर सम्मानआदि से नवाज़ा गया था. राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कवि-सम्मेलनों में सुप्रसिद्ध सुशील चड्ढा उर्फ़ हुल्लड़ मुरादाबादी को तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने भी सम्मानित किया था. सुशील चड्ढा उर्फ़ हुल्लड़ मुरादाबादी ने बैंकाक, नेपाल, हांगकांग, तथा अमेरिका के 18 नगरों में यात्राये करते हुए अपने हास्य की अमिट छाप छोड़ी.
सुशील चड्ढा उर्फ़ हुल्लड़ मुरादाबादी लंबे वक्त तक बीमार रहे. वह लगभग छह साल से डायबिटीज और थायराइड संबंधी दिक्कतों से पीड़ित थे. 12 फरवरी 2014 शनिवार को शाम करीब 4 बजे मुंबई स्थित आवास में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया. मृत्यु के समय वह 72 वर्ष के थे.
निश्चित ही खुखरायन परिवारों को अपने इस नायाब हीरे पर अभिमान होना चाहिए, जिसने मुश्किल दौर से गुजरते हुए लोगों के चेहरों पर मुस्कान बिखेरी और गुदगुदाते अंदाज़ से हँसना सिखाया.
विशाल चड्ढा
7588518744