मुंबई (तेज समाचार डेस्क). विषय-वासना के मीठे जहर से जीव की विवेक शक्ति नष्ट हो जाती है. विवेक की प्राप्ति का मुख्य स्रोत है, महापुरुषों का सत्संग, भगवान् और उनके भक्तों की कथा. यह अमृत उद्गार आचार्य भाष्कर महाराज ने मालाड प. के आदर्श दुग्धालय सोसायटी में उत्तर प्रभा संस्था द्वारा आयोजित धार्मिक कार्यक्रम में व्यक्त किया. यह धार्मिक कार्यक्रम उत्तर प्रभा के अध्यक्ष डा. अमर मिश्र के मार्गदर्शन में 5 दिनों तक चला.
आचार्य भाष्कर महाराज ने बताया कि श्रीमद्भागवत एवं राम कथा व्यक्ति को पापकर्मों से बचाकर, उसे सहज ही मन, वचन और कर्म से लोक-परलोक परमार्थिक सत्कर्मों में प्रतिष्ठित कर देती है. आचार्य ने ब्रह्मा जी के मोहभंग प्रकरण की कथा के माध्यम से उसका आध्यात्मिक विवेचन करते हुए कहा कि भगवान् कहते हैं कि समस्त प्राणियों में केवल मैं ही हूं, सब मेरे हैं, मैं सबका हूं. जब हम सभी प्राणी एक ही परमात्मा के रूप हैं, तो हमें सदैव एक दूसरे के प्रति भाईचारा, स्नेह और सहयोग की पवित्र भावना से भावित होना चाहिये. भले ही हम किसी भी देश, धर्म, सम्प्रदाय और वर्ग के हैं किन्तु हमारे मूल में एक ही परमात्मा है. हम सब उसी सर्वेश्वर परमेश्वर के प्यारे-दुलारे और सबसे न्यारे पुत्र-पुत्री हैं. भाष्कर महाराज ने कहा, योगयोगेश्वर लीलापुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण हम सभी मानवजाति को “ब्रह्मा मोह भंग” की लीला के माध्यम से यह संदेश दे रहे हैं, हम सब परस्पर मिल-जुलकर रहें, किसी भी प्रकार से किसी के साथ द्वेष, कपट और स्वार्थपरक व्यवहार न करें.
उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए कहा कि एक बार यशोदा मां यमुना में दीप दान कर रही थीं. वे पत्तों पर रख कर दीपकों को यमुना में प्रवाहित कर रही थीं, काफी समय के बाद उन्होंने देखा कि दीपक आगे बढ़ ही नहीं रहे हैं, गौर से देखा तो कान्हा लकड़ी से दीयों को बाहर निकाल रहे थे. मां ने कान्हा से पूछा कि यह क्या कर रहे हो, भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि ये सब दीपक डूब रहे थे, इसलिए इन्हें बचा रहा हूं. मां यशोदा हंसने लगीं और बोली किस-किस को बचाएगा, भगवान श्रीकृष्ण ने मुस्कराते हुए कहा कि मैं सभी को बचाने का ठेका थोड़ी ले रखा हूं, जो मेरे पास आएगा, उसी की रक्षा करूंगा. भाष्कर महाराज ने कहा कि इसलिए लोगों को हमेशा भगवान और गुरु की शरण में रहना चाहिए.