” दुकान ” शब्द अपने आप में कुछ छोटा लगता है ,कयनोकी आजकल बड़े बड़े मॉल जगह जगह और धड़ा धड़ खुल रहे है और बड़ी तीव्र गति से लोगों को अपनी ओर आकर्षित भी कर रहे हैं।देशी विदेशी खाना , देशी विदेशी कपड़े और देशी विदेशी चप्पल जूते की यहाँ भरमार है। भीड़ का तो यहाँ कहना ही क्या, रोज ही यहाँ कुम्भ के मेले जैसा दृश्य दिखाई देता है। यहाँ लोग समय और पैसा लुटा कर खुश दिखाई देते है। ऐसी जगह किसी चल चित्र जैसी दिखाई देती है। समाज में संस्कारों और सभ्यताओं में हो रहे परिवर्तन हम यहाँ स्पष्ट रूप से देख सकते है और उनका अनुसरण कर लोग अपने को धन्य भी मानते है।
ऐसी ही बड़ी बड़ी व्यापारिक संस्थाएँ कुछ और भी हैं जहाँ की भीड़ भाड़ शायद इन आधुनिक दुकानों से भी कई गुना जयादा होती है परन्तु यह तथागतित भीड़ दुकानदारों के आगे नतमस्तक रहती है। उधर मॉल में लोग यह सोच कर आते है की बस आज एक ही दिन की जिंदगी बची है इसे भरपूर जी लो ,कल हो न हो। और उधर लोग इस प्रयत्न में लगे रहते है की मरने के बाद भी ये सब सुख उनको प्राप्त होते रहे इस जो धर्म गुरु कहे वो मान कर चलो। इसलिए समय निकाल कर हाल बेहाल हो कर भी गुरुओं की वाणी सुनते है या सुनने का भरकस प्रयत्न करते है।
लाखों रूपये खर्च कर पंडालों का निर्माण किया जाता है और गुरूजी के आसन की शोभा तो देखते ही बनती है ,हजारों की संख्या में लोग यहाँ आ गुरु के दर्शन प् अपने को धन्य मानते है और कथा सुन कर यह सुनिश्चित हो जाता है की मानो स्वर्ग मिल ही गया।
गुरु जी अपने विशेष आसन पर विराजमान हो कर राम कथा सुना रहे है की किस तरह राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ नाना प्रकार के कष्टों को सह कर अपने वचन का पालन कर रहे है ,कथा वाचक का गला रुंध जाता है आँखे भी नम हो जाती है श्रोता भी भाव विभोर हो जाते है ,कथा का जितना अधिक प्रभाव उतनी अधिक आश्रम की कमाई ——-बाहत कुछ है कहने को पर सभी इस सच्चाई को जानते है जो कथा सुनने जाते है वो भी और जो नहीं जाते वो भी। यहाँ पर्दे के पीछे का सच कुछ और ही होता है।
आदरणीय तुलसी दास रचित राम चरित मानस एक महान ग्रन्थ है जिसकी रचना हिन्दू धर्म की रक्षा करने के लिए की गई थी ,इस ग्रन्थ की व्याख्या से अधिक महत्वपूर्ण तो ये होगा की हम उसे आत्मसात करें ,अपने जीवन में उन आदर्शों का पालन करें पर यह डगर बहुत कठिन है ,आज के आधुनिक युग में लोगों को सब कुछ रेडीमेड चाहिए ,इस लिए पहुँच जाते हैं
राम की दुकान पर। हमें यह जानना होगा की “राम”शब्द अपने आप एक अद्भुत शक्ति का प्रतीक है और निःसंदेह इस नाम की उपसना से साधना से मनुष्य में आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है ,लोग इस बात को जानते है समझते भी है पर दुःख इस बात का है की वे सब दशरथ पुत्र राम की कथा का श्रवण कर उनकी म्हणता का गन गान तो करते है पर अपने जीवन में उन सब बातों का पालन नहीं करते। रामचरितमानस समाज और चरित्र निर्माण का एक सशक्त एवं आदर्श साधन है। सैकड़ों वर्षों से राम कथा या भगवत सुनने सुनाने की प्रथा रही है और हजारों धर्म गुरुजनो ने इस राम की दुकान से अपार धन भी कमाया है और धीरे धीरे इस दुकान को एक भव्य मॉल (आश्रम ) में परिवर्तित कर दिया
अब लाखों करोड़ों लोग इस दुकान पर जाते है पुरे ध्यान से कथा सुनते है ,कभी कभी हजारों रुपए भी खर्च कर देते हैं पर ऐसी दुकानों से क्या मिला ,पैसा और समय दे कर भी खली हाथ ही लौट आते है। कोई भी व्यक्ति अपने अंदर लेशमात्र भी राम का अंश नहीं पैदा कर सका। आज के परिवेश में राम का नाम धरनो में बैठा है ,धर्मगुरुनो की महफ़िल में गूँज रहा है नेताओं की कुर्सी की ध्वजा बन चुका है ,रक्तपात करते विचारों की चाकू की धार बना है। आस्था और भावनाओं के नाम पर सरे आम जुलूसों और सभांओ में उछाला जा रहा है। राम भगवान विष्णु के अवतार मने जाते है जो इस धरती पर मानव रूप में आयेथे और उनकी आत्मा यदि यहीं कहीं है तो वो भी यह सब देख कर सोचने को मजबूर होगी या सम्भवतः सोचती होगी हे मेरे देशवासिओ जिस दुकान से तुमने राम का नाम खरीदा वहां राम का चरित्र भी तो उपलब्ध था वो कन्यों नहीं खरीदा ,वहां राम के आदर्श भी उपलब्ध थे वो क्यनों नहीं अपनाये ,वहां राम का जन जम के प्रति प्रेम बिना किसी जाती भेद भाव के पर्यात मात्रा में उयलब्ध था वो कन्यों नहीं खरीदा यदि उसमे से कुछ खरीद लेते तो आज भी भारत में राम राज होता और हम गर्व से कहते
दैहिक देविक भौतिक तापा ,रामराज काहू नहीं व्यापा लेकिन हम तो बस राम के नाम की दोकान सजा कर बैठे रह गए।
– नीरा भसीन- ( 9866716006 )